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Friends is post me आप जानेंगे की मौलिक अधिकार क्या होते है,ये कितने प्रकार के होते है,संविधान ने हमें कौन कौन से मौलिक अधिकर दिए है तो आइए जानते है   

 मौलिक अधिकार क्या है



मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता हाैैं

मौलिक अधिकारों का अर्थ

मौलिक कर्तव्य के बारे में
मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता। ये अधिकार कई करणों से मौलिक हैं-

1. इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हे देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता।

2. ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जायेगा।

3. इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता।

4. मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है।

साधारण कानूनी अधिकारों को राज्य द्वारा लागू किया जाता है तथा उनकी रक्षा की जाती है जबकि मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा लागू किया जाता है तथा संविधान द्वारा ही सुरक्षित किया जाता है।

साधारण कानूनी अधिकारों में विधानमंडल द्वारा परिवर्तन किये जा सकते हैं परंतु मौलिक अधिकारों में परिवर्तन करने के लिये संविधान में परिवर्तन आवश्यक हैं।

मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण


भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। इन अधिकारों में अनुच्छेद 12, 13, 33, 34 तथा 35 क संबंध अधिकारों के सामान्य रूप से है। 44 वें संशोधन के पास होने के पूर्व संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा जाता था परंतु इस संशोधन के अनुसार संपति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया। भारतीय नागरिकों को छ्ह मौलिक अधिकार प्राप्त है -

                    मौलिक अधिकार




1. समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।

2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।

3. शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।

4. धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक।

5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद

हम ऊपर दिए गए 6 मौलिक अधिकारों (fundamental rights) का बारी-बारी से संक्षेप में वर्णन करेंगे 
 

1. समानता का अधिकार (RIGHT TO EQUALITY)

इसके अनुसार राज्य की तरफ से धर्म, जाति, वर्ण और लिंग के नाम पर नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा. राज्य की दृष्टि से सभी नागरिकों को सामान माना गया है. लेकिन, राज्य के स्त्रियों, बच्चों तथा पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए विशेष सुविधा के नियम बनाने का अधिकार दिया गया है.

कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)  – यह ब्रिटिश विधि से लिया गया है. इसका अर्थ है कि राज्य पर बंधन लगाया जाता है कि वह सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन्हें एक समान रूप से लागू करेगा.
धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म के स्थान पर भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15)
लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता (अनुच्छेद 16)
अस्पृश्यता का निषेध (अनुच्छेद 17)
उपाधियों का निषेध (अनुच्छेद 18)


2. स्वतंत्रता का अधिकार (RIGHT TO FREEDOM)

प्रजातंत्र में स्वतंत्रता को ही जीवन कहा गया है. नागरिकों के उत्कर्ष और उत्थान के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें लेखन, भाषण तथा अपने भाव व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी जाए. उन्हें कम से कम राज्य सरकार द्वारा यह आश्वासन दिया जाए कि उनकी दैनिक स्वतंत्रता का अकारण अपहरण नहीं किया जायेगा.

a) भाषण और भावाभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)



b) शांतिपूर्वक निःशस्त्र एकत्र होने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19ख)

c) संघ या समुदाय या परिषद् निर्मित करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19ग)

d) राज्य के किसी भी कोने में निर्विरोध घूमने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19घ)

e) किसी भी तरह की आजीविका के चयन करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19छ)

f) अपराधों  के लिए दोषसिद्धि के विषय में संरक्षण  (अनुच्छेद 20)

g) प्राण और शारीरिक स्वाधीनता का संरक्षण (अनुच्छेद 21)

h) बंदीकरण और निरोध से संरक्षण

राज्य को यह अधिकार है कि वह किसी व्यक्ति की इन स्वतंत्रताओं पर नियंत्रण करें – यदि वह यह समझे कि इनके प्रयोग से समाज को सामूहिक तौर पर हानि होगी.


3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (RIGHT AGAINST EXPLOITATION)


संविधान के अनुसार, मनुष्यों का क्रय-विक्रय, बेगार तथा किसी अन्य प्रकार का जबर्दस्ती लिया गया श्रम अपराध घोषित किया गया है. यह बताया गया है कि 14 वर्ष से कम आयुवाले बालकों को कारखाने, खान अथवा अन्य संकटमय नौकरी में नहीं लगाया जा सकता.




4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (RIGHT TO FREEDOM OF RELIGION)


संविधान के द्वारा भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है. Articles 25, 26, 27 और 28 में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार उल्लिखित है. राज्य में किसी भी धर्म को प्रधानता नहीं दी जाएगी. धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ धर्मविरोधी राज्य नहीं होता है. अतः प्रत्येक व्यक्ति की आय, नैतिकता और स्वास्थ्य को हानि पहुँचाये बिना अपना धर्मपालन करने का सम्पूर्ण अधिकार है.


5. संस्कृति और शिक्षा से सम्बद्ध अधिकार (CULTURAL AND EDUCATIONAL RIGHTS)


संविधान द्वारा भारतीय जनता की संस्कृति को बचाने का भी प्रयास किया गया है. अल्पसंख्यकों की शिक्षा और संस्कृति से सम्बद्ध हितों की रक्षा की व्यवस्था की गई है. यह बताया गया है कि नागरिकों के किसी भी समूह को, जो भारत या उसके किसी भाग में रहता है, अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार है. धर्म के आधार पर किसी भी इंसान को शिक्षण संस्थान में नाम लिखाने से रोका नहीं जा सकता.


6. सांवैधानिक उपचारों का अधिकार (RIGHT TO CONSTITUTIONAL REMEDIES)


भारतीय संविधान में में मौलिक अधिकारों (fundamental rights) को अतिक्रमण से बचाने की व्यवस्था की गई  है. संविधान के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों का संरक्षक माना गया है. प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना करने का अधिकार प्राप्त है.

डॉ. अम्बेडकर ने बताया था कि मौलिक अधिकार (fundamental rights) उल्लिखित करने का उद्देश्य एक तो यह है कि हर व्यक्ति इन अधिकारों का दावा कर सके और दूसरा यह है कि हर अधिकारी इन्हें मानने के लिए विवश हो।

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